(1)
शिशिर के सर्दिले झोके, तिमिर में गहराते जाए
सोई हुई संवेदना ने ,चेतना के गीत गाये
कोसना बंद किया जाए , अब यहाँ शीतल पवन को
शीत की सदवृत्ति से ही गंगा हिमालय से है आये
(2)
कुछ देर भले ही लग जाए स्वप्निल उषा की प्रथम किरण में
घनघोर अंधेरो की बस्ती में रजनी उज्ज्वलता पायेगी
रही परम्परा प्रतिकूल चले हम डटे रहे प्रतिमान बचाने
मधु- भंवरो की आक्रांत -क्रीडा पीड़ित न प्रण को कर पाएगी
(4)
स्मृतियों की गुहा में छाया हुआ घनघोर तम है
व्यथित मन में उठती आहे तृप्ति के क्षण बहुत कम है
शब्द जाल में उलझकर गम हो गई संभावनाए
अनगिनत प्रतिबिम्बों में ही सृजनाओ के भरम है
शिशिर के सर्दिले झोके, तिमिर में गहराते जाए
सोई हुई संवेदना ने ,चेतना के गीत गाये
कोसना बंद किया जाए , अब यहाँ शीतल पवन को
शीत की सदवृत्ति से ही गंगा हिमालय से है आये
(2)
कुछ देर भले ही लग जाए स्वप्निल उषा की प्रथम किरण में
घनघोर अंधेरो की बस्ती में रजनी उज्ज्वलता पायेगी
रही परम्परा प्रतिकूल चले हम डटे रहे प्रतिमान बचाने
मधु- भंवरो की आक्रांत -क्रीडा पीड़ित न प्रण को कर पाएगी
(4)
स्मृतियों की गुहा में छाया हुआ घनघोर तम है
व्यथित मन में उठती आहे तृप्ति के क्षण बहुत कम है
शब्द जाल में उलझकर गम हो गई संभावनाए
अनगिनत प्रतिबिम्बों में ही सृजनाओ के भरम है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें