मंगलवार, 29 नवंबर 2011


जीवन की नदी में
उम्र की है नाव
कड़ी दोपहर में
कही नहीं छाँव

रहा नहीं साथी
किस्मत का हाथी
छीन ली गई
जैसे अंधे की लाठी
शूलो की चुभन से
घायल है पांव
सफर की थकन में
मिली नहीं ठांव

सबल बाजुओ ने
सागर है तैरे
थके सूर्य से भी
सुबह मुंह फेरे
क्षितिज के है उस पार
सपने सुनहरे
बसायेगे यहाँ
सतयुगी गाँव

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