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जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
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सम्वेदना का भाव भरा खरा रहा इन्सान जीवित जो आदर्श रखे पूरे हो अरमान जो पीकर मदमस्त हुआ हुआ व्यर्थ बदनाम बाधाएँ हर और खड़ी...
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अब रिश्तों में जान नहीं रहा नहीं है स्नेह सम्वेदना से शून्य हुए गहरे है संदेह जीवन से अब चला गया कुदरत से अनुराग संबंधो की शाख ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत ...
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
हटाएंबहुत बढ़िया
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