मजदूरों की पीड़ा को , नाप सके तो नाप
उनकी अपनी थी शंकाये, उनके अपने डर
तू अपने हर सपने को , निर्भयता से भर
दिखती दूर तक मरुधरा, दिखती दूर तक रेत
गिरकर उठता रोज यहाँ, टपका जिसका स्वेद
जितने भी थे लौट गये , अपने अपने घर
सूरज उगता अस्त रहा ,उसका तेज प्रखर
बहुत खूब...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी।
दिखती दूर तक मरुधरा, दिखती दूर तक रेत
जवाब देंहटाएंगिरकर उठता रोज यहाँ, टपका जिसका स्वेद।
बहुत भावपूर्ण । सुंदर अभिव्यक्ति ।
उम्दा
जवाब देंहटाएंगिरकर उठता रोज यहाँ, टपका जिसका स्वेद
जवाब देंहटाएंशब्दों का अच्छा चयन...
सुन्दर लेखन
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इन्क़िलाब