व्याभिचार
मे जीने वाले को अंधियारा
भाता है
सदाचार
से रहने वाला गीत रवि के गाता
है
प्रियतम
का उत्कट अभिलाषी प्रभु प्रीति
तक जााता है
साॅसों
के स्पंदन जैसा प्रिय का प्रिय
से नाता है
शब्दकोष
के बल पर केवल काव्य नही रच
पाता है
संवेदना
से रिक्त ह्दय मे रहा सदा ही
सन्नाटा है
पुण्य
,ज्ञान
,पुरुषार्थ
यहाँ पर व्यर्थ कभी नही जाता
है
दुष्कर्मों
के दम पर कोई व्यक्ति नही सुख
पाता है
स्वाभिमान
पर रहने वाला कठिन राह चल पाता
है
तिनका
-तिनका
जोड़कर -जोड़कर
,स्वर्ग
धरा पर लाता है
दुष्ट
,दम्भी
,मिथ्याभिमानी
,जो
छल छद्म रचवाता है
नीच कर्म से लज्जित होकर ,आँख मिला नहीं पाता है
नीच कर्म से लज्जित होकर ,आँख मिला नहीं पाता है
कला
विहीन जीवन क्यो?
जिए
काव्य ह्रदय से अाता है
कलाकार
संगीत कला का गीत गजल से नाता
है
,
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