गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

शब्दकोष के बल पर केवल काव्य नही रच पाता है




व्याभिचार मे जीने वाले को अंधियारा भाता है
सदाचार से रहने वाला गीत रवि के गाता है

प्रियतम का उत्कट अभिलाषी प्रभु प्रीति तक जााता है
साॅसों के स्पंदन जैसा प्रिय का प्रिय से नाता है

शब्दकोष के बल पर केवल काव्य नही रच पाता है
संवेदना से रिक्त ह्दय मे रहा सदा ही सन्नाटा है

पुण्य ,ज्ञान ,पुरुषार्थ यहाँ पर व्यर्थ कभी नही जाता है
दुष्कर्मों के दम पर कोई व्यक्ति नही सुख पाता है

स्वाभिमान पर रहने वाला कठिन राह चल पाता है
तिनका -तिनका जोड़कर -जोड़कर ,स्वर्ग धरा पर लाता है

दुष्ट ,दम्भी ,मिथ्याभिमानी ,जो छल छद्म रचवाता है
नीच कर्म से लज्जित होकर ,आँख मिला नहीं पाता है

कला विहीन जीवन क्यो? जिए काव्य ह्रदय से अाता है
कलाकार संगीत कला का गीत गजल से नाता है 
 















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