मंगलवार, 13 नवंबर 2018

हलछठ

आत्मीय संसर्ग हुआ अंतर मन की प्रीत
जीवन मे आ जाओ न बन जाओ संगीत

आँचल तो आकाश हुआ जब आई हल छठ
सूरज से इस रोज मिले खिल गए है पनघट

इतना प्यारा सच्चा है सूरज तेरा प्यार
किरणों से तो रोज मिला जीवन को उपचार

निर्मल जल सी सांझ रहे बांझ रहे न कोय
दिनकर संग जो जाग रहा भाग्य उसी का होय 

पटना की है परम्परा नदियों के है तट
डूबते को भी प्यार मिला सूरज की हल छठ

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज