गहरा गहरा जल हुआ गहरे होते रंग
ज्यो ज्यो पाई गहराई पाई नई उमंग
गहराई को पाइये गहरा चिंतन होय
उथलेपन में जो रहा मूंगा मोती खोय
गहरा ठहरा जल हुआ ठहरा मन विश्वास
ठहरी मन की आरजू पाई है नव आस
गहराई में खोज मिली गहरे उठी दीवार
गहराई न जाइये गहरी गम की मार
ऊंचाई से उतर रहे लेकर चिंतन वेद
जीवन तो समझाईये गहरे है मतभेद
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/11/2018 की बुलेटिन, " सूचना - ब्लॉग बुलेटिन पर अवलोकन 2018 “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक भाव से सजा सुंदर चिंतन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंSuch a wonderful lines, publish your book online with Book rivers
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