Srijan
सोमवार, 26 नवंबर 2018
एक भौर जुगनू की
सुप्रतिष्ठित ललित निबंधकार श्री नर्मदा प्रसाद जी उपाध्याय द्वारा २६ वर्ष पूर्व मुझे प्रेषित यह पत्र जब अचानक मुझे ढूंढने पर मिला तो उनके द्वारा रची गई कृति "एक भौर जुगनू की याद "आ गई आज कल ऐसी प्रेरणा मिलती कहा है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आई याद मां की
सखिया करती हास ठिठौली
जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
जीवित जो आदर्श रखे
सम्वेदना का भाव भरा खरा रहा इन्सान जीवित जो आदर्श रखे पूरे हो अरमान जो पीकर मदमस्त हुआ हुआ व्यर्थ बदनाम बाधाएँ हर और खड़ी...
अपनो को पाए है
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें