अमृत बरसे नभ
शरद पूर्णिमा में पाया है
जीवन का सौरभ
ठंडी ठंडी पवन बही
ठंडे दिन और रात
खुशबू महके पंछी चहके
सुरभित पारिजात
बांसुरी की मीठी लहरी,
कान्हा करे पुकार
हिय में अंतर्नाद रहा
बजते रहे सितार
लज्जा का आभूषण करुणा के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज ह्रदय मे वत्सलता गुणीयों का रत्न नियति भी लिखती है न बिकती हर चीज
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