अमृत बरसे नभ
शरद पूर्णिमा में पाया है
जीवन का सौरभ
ठंडी ठंडी पवन बही
ठंडे दिन और रात
खुशबू महके पंछी चहके
सुरभित पारिजात
बांसुरी की मीठी लहरी,
कान्हा करे पुकार
हिय में अंतर्नाद रहा
बजते रहे सितार
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
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