शनिवार, 27 मार्च 2021

लिपटत तन पर धूल

जब मस्तक पर मला यहां लाल लाल गुलाल
भीतर भीतर लाल हुआ ,बाहर से खुशहाल

होले होले प्यार बढ़ा,चढता रहा बुखार
मन से सारा मैल हरे, होली का त्यौहार

डिम डिम करती चली यहां, यारो की है गैर
ढोलक से है ताल मिली, ठुमक रहे है पैर

महुआ ताड़ी भांग धरे ,कितने है मशगूल
होली में न रंग बचा, लिपटत तन पर धूल

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज