जब ज्योति से ज्योत जली
जगता है विश्वास
जीवन में कोई सोच नहीं
वह करता उपहास
होता है जो मूढ़ मति
जाने क्या कर्तव्य
जिसका होता ध्येय नहीं
उसका न गंतव्य
गुजरा पल तो बीत गया
तू कल को है सीच
इस पल में जब ज्योत जली
रोशन है हर चीज
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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