रविवार, 29 दिसंबर 2024

कुल्हड़ की चाय


कुल्हड़ की 
वह चाय नहीं है
मैथी का न साग
चूल्हे में 
वह आग नहीं 
कंडे की न राख
माटी की सुगन्ध 
है बिछड़ी 
कहा गई वह
प्यारी खिचड़ी 
जितने भी थे 
रिश्ते बिखरे
लगे स्वार्थ के दाग

4 टिप्‍पणियां:

  1. समय बदल रहा,लोग भी पहले जैसे कहाँ है अब।
    सारगर्भित अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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