शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

युग युग तक जीता है

अंधियारा रह रह कर आंसू को पीता है 
चलते ही रहना है कहती यह गीता है
कर्मों का यह वट है निश्छल है कर्मठ है
कर्मों का उजियारा युग युग तक जीता है

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