उठती लहरों पर नाविक चले आ रहे है
आसमाँ पर बादल घने छा रहे है
ले के पतवार नैया ,खै चल खैवैय्या
हौसले जिंदगी में हमें आ रहे है
घौसले परिंदों के बुने जा रहे है
चुनते चुनते ही तिनके रखे जा रहे है
राहे आसान कभी भी होती नहीं है
फलसफे जिंदगी के हमें भा रहे है
चक्रवातो में दरिया भी इतरा रहे है
भंवर लहरों पर गहरे हुए जा रहे है ,
हर चुनौती से होगा यहाँ सामना
कामना के किनारे अब मिले जा रहे है
समाधान की कश्ती हम लिए जा रहे है
जहर जुल्मो सितम के पिए जा रहे है
कभी नाविक की साँसे भी रुकती नहीं है
मरीचिका में मृग बन छले जा रहे है
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