अब हो गई है आत्मा की निज ईष्ट से पहचान है
हे !नन्हे शिशु तेरी हँसी मे ईश्वरीय मुस्कान है
स्थिर मन पुलकित नयन म्रदु होठ पर है हँसी ठहरी
वह हँसी अनुपम अलौकिक , भावनाए बहुत गहरी
हो गया तन-मन सिंचित मन कर रहा रस-पान है
हे !नन्हे शिशु तेरी हँसी मे ईश्वरीय मुस्कान है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे भगवन है अनादि,उनका नहीं कोई छोर है
जान पाया हूँ अभी तक,ऋतुराज है चित चोर है
ढूँढ पाया नही अब तक, विज्ञान से ईन्सान है
हे !नन्हे शिशु तेरी हँसी मे ईश्वरीय मुस्कान है,,,,,,,
कला के वे सिन्धु है दीनबंधु बन हर और छाये
वे लोक के कल्याण हेतु करते सदा विष पान है
हे !नन्हे शिशु तेरी हँसी मे ईश्वरीय मुस्कान है,,,,,,,
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