प्रीती की सूरत है भोली पर ,मंद मंद मुस्काती है
-
-
राह थकन ही देती है ,मुश्किल से मंजिल आती है
जीवन है कांटो में पलता चाहत कुचली ही जाती है
-
सपनो में खिलती है उषा , निशा में जलती बाती है
-
सपनो में खिलती है उषा , निशा में जलती बाती है
है ध्येय बड़ा और तिमिर खड़ा आशा पलती ही जाती है
-
कही कृष्ण कन्हैया की बंशी गोपी के घर तक जाती है
-
कही कृष्ण कन्हैया की बंशी गोपी के घर तक जाती है
जीवन में आपा धापी है ,सुख शांति कहा मिल पाती है
-
संध्या में काली निशा है ,उषा निशा से आती है
उषा में जीवन की आशा ,भाषा अब नव गीत गाती है
-
ऋतुये आती है जाती है , खुशबू फूलो में लाती है
तरु बेलो पे कपोल कपल,फल पत्तो को बिखराती है
-
सत्ता के मद मे हो पागल मद मस्त हो रहा हाथी है
दुर्बल जनता की चींखे,तम चीर-चीर कर आती है
-
-
संध्या में काली निशा है ,उषा निशा से आती है
उषा में जीवन की आशा ,भाषा अब नव गीत गाती है
-
ऋतुये आती है जाती है , खुशबू फूलो में लाती है
तरु बेलो पे कपोल कपल,फल पत्तो को बिखराती है
-
सत्ता के मद मे हो पागल मद मस्त हो रहा हाथी है
दुर्बल जनता की चींखे,तम चीर-चीर कर आती है
-
निर्धन दुखियारे की चिंता,सिहासन को कब आती है
नेता मे घटती नैतिकता,बनी राज-नीती कुल घाती है
-
-
बचपन के द्वार खडा यौवन,खोये बचपन सहपाठी है
यह गेह देह होकर दुर्बल ,आयु घटती ही जाती है
-
-
अश्को से प्यास बुझी जाती और छन्दो से हर्षाती है
उर-अंतर मे गुंजित होकर,गीतो मे पीडा आती है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें