कल में बसता हल है
,कल को लेकर चल
जो कल के न साथ चला मिले है अश्रु जल
कल की जिसको चाह नही
वो क्या जाने फल
हर पल सुधरा आज तो
सुधरे कल हर पल
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें