शुक्रवार, 22 जून 2012

ठहरे जल पर चित्र तराशा

मन की आशा टूट गई है ,अब नहीं देता है कोई दिलासा 
गगरी नाजुक फूट गई है ,जल बिन जीवन रहता प्यासा  

म्रगत्रष्णा सी रही जिन्दगी,मन मृग होकर खोजे पानी
पडी जेठ की भीषण गर्मी, भीषण मौसम मुंह की खानी
बूंद बूंद  सुख की जुट जाये, तो मरूथल मे जीवन आशा

कर्म-धर्म का चला है फेरा ,सत्य धर्म का कहा सवेरा
तेरा-मेरा अब न कहना ,काल चक्र अब कहा है ठहरा
ठहरा जल है नही है लहरे ,ठहरे जल पर चित्र तराशा

नियति होती नही है दानी,अनसुलझी बातेसुलझानी
प्रश्न चिन्ह लिखे चेहरो पर,भीड मे चेहरे भीड अन्जानी
समय चिठ्ठीया बाँट रहा है,काले धन का हुआ खुलासा

कल तक खुद को बेच रहा था ,आज सत्य को बेच रहाहै
सत्य राह का राही जो भी,घर पर उसके क्लेश रहा है
भ्रष्ट व्यवस्था सुधरे तब ही ,आयेगा सुख-चैन जरा सा

जीवन मे अब क्या है पाना ,मिल जाये बस केवल दाना
सिंसक रही दुखियारी जनता,महंगाई अब गाये गाना
निर्वाचन से चुन लो नेता ,आम आदमी ठगा-ठगा सा

कलमकार बैचेन हो गया ,नींद उडी और चैन खो गया
रक्षक भक्षक यहा बन रहे ,बीज ईर्ष्या के कौन बो गया
पद कुर्सी का अहम भुला दो ,नही दिखता रूप भला सा

सजे हुये पाखंडी चेहरे ,मूल्यवान नैतिक कब ठहरे
फली फुली है नौकरशाही ,राज धर्म पर लगे है पहरे
कौन उन्हे समझाता यहाँ ,जन सत्ता का रूप उजला सा

हर अपराधी गढे कहानी,हुई अपराधी अब राजधानी
नौटंकी है लौकतंत्र की ,नटवर नेता गिर गये ज्ञानी
अब पोषीत है कारावासित ,शोषित जन है डरा डरा सा

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज