शनिवार, 30 जून 2012

बहती नदी है

लिए जल शिखर से बहती नदी है
हुई बाढ़ लीला
घटी
त्रासदी है

खारा
हुआ जल  ,खारी हुई लहरे
समन्दर के भीतर  छुपे राज गहरे
बिंदु से सिन्धु में
बदलती
नदी है 

पर्वत की रानी ने पहने है कुंडल
 हिम के शिखर है जल के कमंडल
फल फूलो से मेवो से घाटी लदी है 

मान सरोवर है मन का सरोवर
कैलाश के पास शिव की धरोहर
गंगा का
संगम अब हुगली नदी है 

मधुर जल
है नभ पर नहीं जल है भू पर
मृदु जल है निर्झर मलिन जल समन्दर
जल
यात्रा में बीती ही जाती सदी है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज