हालात के दंश तो तन मन को डसते है
भगवान् तो इंसान के भावो में बसते है
लाचारिया जीवन को जीने कहा देती है
बरसते नहीं जो बादल जोरो से गरजते है
अपने हो पराये हो ,अपनों पर हसते है
सम्वाद की भाषा में लोग ताने ही कसते है
भींगी हुई पलकें है ,आंसू भी छलके है
पलको में आजकल ,गम क्यों सिमटते है
भगवान् तो इंसान के भावो में बसते है
लाचारिया जीवन को जीने कहा देती है
बरसते नहीं जो बादल जोरो से गरजते है
अपने हो पराये हो ,अपनों पर हसते है
सम्वाद की भाषा में लोग ताने ही कसते है
भींगी हुई पलकें है ,आंसू भी छलके है
पलको में आजकल ,गम क्यों सिमटते है
ऊँची सी दीवारे है रिश्तो की मीनारे है
संवाद के सेतु अब टूट कर बिखरते है
खामोशिया चारो तरफ बिखरी हुई पसरी हुई
जहरीले हुए साए आस्तीन से लिपटते है
संवाद के सेतु अब टूट कर बिखरते है
खामोशिया चारो तरफ बिखरी हुई पसरी हुई
जहरीले हुए साए आस्तीन से लिपटते है
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