रविवार, 27 सितंबर 2020

ऐसा संत कबीर

जो दुख में भी दुखी नही होता नही अधीर
सुख में भी जो डिगा नही ऐसा संत कबीर

जो संतो के संग रहा रखता मन समभाव
मानव नही  देव रहा झेल गया हर घाव

खुद के बल पर टिका हुआ खुद पर है विश्वास
जो मूल से है जुड़ा यहा छू लेता आकाश

मिल कर के भी घुला नही इक ऐसा भी रंग
सुख सुमिरन भुला नही रहता सत के संग

मन मे तो संतोष नही दिखती नही उमंग 
वह कैसा संन्यास भला कैसे हो सत्संग

2 टिप्‍पणियां:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज