दिखा न खुद का दोष
दुर्जन को न कभी रहा
थोड़े में संतोष
बौने है प्रतिमान नये
धीमी है रफ्तार
धीमे धीमे लुप्त हुए
प्रतिभा अविष्कार
प्रतिबिम्बो में देख रहे
जीवन का वो सत्य
दिखते अब तो उन्हें नही
अपने अनुचित कृत्य
थोड़ा भी है जिन्हें मिला
वे सज्जन संतुष्ट
सब कुछ पाकर दुखी रहे
लोभी जन और दुष्ट
सुन्दर
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी द्वारा सतत प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबोधपरक लेखन
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