सोमवार, 28 सितंबर 2020

सज्जन है संतुष्ट

सबके अवगुण देख रहा 
दिखा न खुद का दोष
दुर्जन को न कभी रहा 
थोड़े में संतोष 

बौने है प्रतिमान नये 
धीमी है रफ्तार
धीमे धीमे लुप्त हुए 
प्रतिभा अविष्कार

प्रतिबिम्बो में देख रहे 
जीवन का वो सत्य
दिखते अब तो उन्हें नही
 अपने अनुचित कृत्य

थोड़ा भी है जिन्हें मिला
वे सज्जन संतुष्ट
सब कुछ पाकर दुखी रहे
लोभी जन और दुष्ट


3 टिप्‍पणियां:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज