जुगनू करते शोर रहे दीप से तम उज्ज्वल
दुख के साथी कहा गये सुख के साथी साथ
पीडायें दिन रात जगी होते छल और घात
अपनो का न साथ रहा अपनो का न बल
अपनो से ही हार गया डूबता अस्ताचल
सपने सारे ध्वस्त हुए कविता हो गई मौन
छल पाकर हम पस्त हुए दुख का साथी कौन
खुली नहीं खिड़की दरवाजे बन्द है जीवन में बाधाएं किसको पसन्द है कालिख पुते चेहरे हुए अब गहरे है गद्य हुए मुखरित छंदों पर प्रतिबंध है मिली...
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