मन ही मन जो दुखी रहा उसका न संसार
चिंता तन को राख करे तू चिंतित क्यो होय
चिंतन जीवन सुखी रहे चिंता को क्यो ढोय
चिंतन पथ परमार्थ भरा चिंतित क्यो है जीव
चिंतन ने नव स्वर्ग रचा स्वर्गिक सुख की नींव
मौलिकता का मूल्य नही वह तो है अनमोल
मूल से जो है भाग रहा मानव वह बेडौल
भीतर भी है नाद रहा उससे कर संवाद
भीतर न रह पायेगा चिंता और अवसाद
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार
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