किससे अपना दर्द कहे , चले गये सब छोड़
सीधी सच्ची प्रीत गई , गांवों क्या का हाल
चौराहों पर भीड़ रही ,सूनी है चौपाल
भीतर से क्यो टूट रहा , भीतर है भगवान
खुद ही से तू हार रहा, खुद को कर बलवान
टूटते जुड़ते स्वप्न रहे, उजड़ गये है वंश
महामारी ने रूप धरा , कोरोना का दंश
भीतर से कमजोर रहा, बाहर से है जोश
जो भीतर से शुध्द रहा , बिल्कुल है निर्दोष
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