शुक्रवार, 4 जून 2021

गाँवो का क्या हाल?

नयनो से न अश्क बहे ,कैसा है ये दौर
किससे अपना दर्द कहे , चले गये सब छोड़

सीधी सच्ची प्रीत गई , गांवों क्या का हाल
चौराहों पर भीड़ रही ,सूनी है चौपाल

भीतर से क्यो टूट रहा , भीतर है भगवान
खुद ही से तू हार रहा, खुद को कर बलवान

टूटते जुड़ते स्वप्न रहे, उजड़ गये है वंश
महामारी ने रूप धरा , कोरोना का दंश 

भीतर से कमजोर रहा, बाहर से है जोश
जो भीतर से शुध्द रहा , बिल्कुल है निर्दोष

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज