खेतो से विलुप्त हुये , हल बक्खर और बैल
मिलता नही शुध्द दही, नकली मिलते बीज
सस्ती सबकी जान रही, महँगी होती चीज
उनके अपने शौक रहे ,उनका था व्यापार
महामारी से टूट गया , कितना कारोबार
भूखे नंगे भावविहीन , देखे कुछ इन्सान
बीमारी ने छीन लिये ,जितने थे अरमान
अब तो सबकी पीर हरो, हे!मेरे भगवान
महामारी अब छीन रही , रिश्तों में थी जान
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