नवीन वर्ष में सोच नई हो , हो मन मे विश्वास
जग में होते पंथ कई, ईश्वर फिर भी एक
नये वर्ष में नई उमंगे, जगे भाग्य की रेख
जब तक न संतोष रहा, जीवन होता शाप
नवीन वर्ष में हटे अंधेरा , कट जायेगे पाप
मन्दिर बजते शंख रहे, घंटी सजते थाल
होता सच्चा कोष वहाँ , जो मन से खुशहाल
चित में तो सन्यास नही , चिन्तन में न राम
फिर भी भगवा वेश धरा, इच्छा रही तमाम
सुन्दर
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