सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

देने वाला खूब देता है , कर लेना तू !मौज
क्यों ?ढूँढता है उसको बाहर ,तुझ में उसकी ओज


अंधियारे में भरपूर सोया उजियारे में भगता रोज़
मिट जाए मन का अंधियारा हट जाएगा दिल से बोझ
कण कण के भीतर वह रहता तू !उसकी है फौज
तीरथ मूरत में न मिलेगा ,क्यों करता है उसकी खौज ?

कर दे अर्पण सारा जीवन ,ज्यादा तू !न सोच
बन जाएगा जब तू !उसका ,ढोयेगा वह तेरा बोझ
पूरा होगा ख़्वाब सुनहरा ,कौशिशे करना तू !रोज
होगा कर्मो का अभिनन्दन ,खिलते है सरोवर में सरोज

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