दीपक बन जलने से अंधियारा जीवन का दूर होता है
जला नहीं गला जो केवल पिघल कर चूर होता है
औरो से क्या जलना है ,स्वयं में ही पिघलना है
दीपक सम जल कर गहन तिमिर निगलना होता है
इस्पाती इरादों के बल प्रतिपल चलना होता है
धधकते अंगारों के बीच लोहे सा ढलना होता है
परस्पर विश्वास का सहारा न मिल पाए तो
आत्मविश्वास के बलबूते जीवन भर चलना होता है
सागर की गहराई में सपनो को नित मचलना होता है
लहरों पर प्राणों लेकर नैया को पल पल चलना होता है
कौन कहता है उखड रही साँसों में संकल्प नहीं होता
घने अंधेरो के भीतर से नित नित निकलना होता है
सागर की गहराई में सपनो को नित मचलना होता है
लहरों पर प्राणों लेकर नैया को पल पल चलना होता है
कौन कहता है उखड रही साँसों में संकल्प नहीं होता
घने अंधेरो के भीतर से नित नित निकलना होता है
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