खोजता चारो तरफ मै कहाँ मेरे कृष्ण है
पंथ पर कठिनाईया है और ढेरो प्रश्न है
ख़्वाब के जो थे किले वे खंडहर बन ढह गये
भाग्य में जो दुख लिखे थे जिंदगी भर रह गये
कुचलती सम्भावनाये ,होते नहीं अब जश्न है
पाने को उत्सुक रहा हूँ इष्ट तेरी साधना है
राधे भी तुम ही हो मेरे ,तू मेरी आराधना है
टूटती मनोकामनाये,उलझे हुए कई प्रश्न है
हो रही है हर दिशा में स्वार्थ की ही जंग है
कर्म क्षेत्र में खड़े पर सारथे नहीं संग है
आचरण है छल कपट के पर सत्य ही वितृष्ण है
भावो की खो गई सीता ,फैला हुआ चहु छद्म है
गीतों में बसती न गीता ,काव्य नहीं पद्म है
कृष्ण को मिलता न अर्जुन,पार्थ को न कृष्ण है
कृष्ण कृष्ण आप पुकारो कृष्ण अर्जुन के साथ है गीता का वो उपदेश याद करो धर्म तुम्हारे साथ हैं कृष्ण राधा वियोग सही प्रेम उनका पूजा समान हैं.
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