कल -कल छल-छल बहता है जल
थम गई बारिश निकले खग-दल
सूख गई माटी,बढ रही घाटी
जंगल जंगल हो गया दंगल
जन बल निर्बल,धन बल का बल
जल-थल पल-पल बनते मरुथल
ऐसा वैसा क्या करे पैसा
मौसम हो गया मानव जैसा
बढ गया भ्रम जल,घट गया भू जल
लालच का दल ,निकला मल जल
करते हम तुम मनमानी है
ढूँढते रह गये शुध्द पानी है
उज्जवल,कोमल निर्मल कहाँ जल
सुध-बुध खो गई थम गई हल-चल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें