शनिवार, 24 मार्च 2012

उज्जवल,कोमल निर्मल कहाँ जल

कल -कल छल-छल बहता है जल
थम गई बारिश निकले खग-दल

सूख गई माटी,बढ रही घाटी
जंगल जंगल हो गया दंगल
जन बल निर्बल,धन बल का बल
जल-थल पल-पल बनते मरुथल

 ऐसा वैसा क्या करे पैसा 
मौसम हो गया मानव जैसा
बढ गया भ्रम जल,घट गया भू जल
लालच का दल ,निकला मल जल

करते हम तुम मनमानी है
ढूँढते रह गये शुध्द पानी है
उज्जवल,कोमल निर्मल कहाँ जल
सुध-बुध खो गई थम गई हल-चल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के  गीत यहां आए है  सिसकती हुई सांसे है  रुदन करती मांए है  दुल्हन की मेहंदी तक  अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में  अपन...