देखो सोचो जान लो गलती के परिणाम
कुदरत ने यह रोग दिया मुश्किल में है प्राण
उतरो गहरे जान लो न देखो उन्मान
गहराई में खोज मिली , गहरी गुण की खान
जो कुछ है पुरुषार्थ यहां , उसके आगे ईश
आलस में सामर्थ्य नही आलस व्यापत विष
निर्जन वन अब कहाँ गये, कहा गया एकांत
अब ऐसा एक रोग लगा ,गलिया भी है शांत
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूंदर
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