भीड़ में न विवेक रहा भीड़ बढ़ने से रोक
भीड़ में से ही लाश मिली कोरोना का रोग
उसका था जो चला गया,रहा नही कुछ अंश
नगरी नगरी दाग लगा , कोरोना का दंश
महामारी से दूर रहो ,खुद का करो बचाव
घर मे ही बस मौज करो मन में न भटकाव
जीवन का कोई मूल्य नही यह तो है अनमोल
बाहर तो है आग लगी, भीतर के पट खोल
तीर्थो में कब ईश मिला घर मे है जगदीश
मन को मंदिर मान लिया नित होता नत शीश
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