दुर्बल होकर देह गली,क्यो चिंतित है मन
चिंतन को अस्वस्थ करे दूषित संचित धन
मन तो दृढ़ संकल्प रहा,रहा न फिर भी मान
स्वजन ने स्व लूट लिया, निजता का अभिमान
दुर्जुन हरदम स्वांग रचे ,धरते दृष्टि मलीन
सज्जन तो पाखंड बचे ,होते पूज्य कुलीन
गुरु चरणन आबध्द रहा, मिला उसे ही ज्ञान
साधक संत महंत कुलीन करता है कल्याण
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