बुधवार, 13 मई 2020

कितने ही मजदूर

पथ पर न गंतव्य मिला चल चल कर बेहाल
सडको पर है भूख मिली कर लो तुम पड़ताल

अपने घर से दूर हुए मरने को मजबूर 
 सपनो से वे छले गये कितने ही मजदूर

पग पग छाले भरे हुए  चेहरे हुए मलीन
मजबुरी के साथ रहे , मजदुरो के दिन

कैसा चिर विश्वास रहा कैसा रहा जूनून
पैदल पैदल चले गए ,पटना देहरादून   

सडको पर है आग लगी चली न देहरादून 
कटने को मजबूर हुए , पटरी पर है खून

कोरोना के साथ रहा महीना मई और जून
दाढ़ी मूंछे कटी नही , सिली नही पतलून 

पग में छाले भरे हुए , हरे हुए है घाव 
दुखियारी और हारी माँ भावो पर पथराव



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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज