मजदूरी तो मिली नही कुचल गई है ट्रैन
कुछ रोटी संग साग रखा ताक रहे है नैन
गिरते उठते चोट लगी , घायल हो गए पाँव
है सबका संकल्प यही, मिल जाये बस गांव
मुम्बई से वह गांव चला, होकर के मजबूर
भूख से तो है मौत भली , मरना भी मंजूर
तुम कितनी ही बात करो , सब कुछ है बेकार
दुख निर्धन का बांट सको , है इसकी दरकार
दे दो चाहे लाख करोड़ , कुछ भी न हो पाय
चल कर जो बेहोश हुए घर पहुचाया जाय
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभयावहता का सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकृतज्ञता के साथ आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए श्रीमान का आभार
हटाएंबहुत मर्म स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंसामायिक यथार्थ।
मार्मिक सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
आभार
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