मन के भीतर के पटल पर कल्पना उभर आती है
भिन्न रूपों में हो बिम्बित कलाये मुस्कराती है
लिए ह्रदय आनंद कंद मस्ती लुटाती है
वह शब्द शिल्प से अलंकृत श्रृंगार पाती है
भिन्न रूपों में हो बिम्बित कलाये मुस्कराती है
लिए ह्रदय आनंद कंद मस्ती लुटाती है
वह शब्द शिल्प से अलंकृत श्रृंगार पाती है
संवेदना का भाव लिए हर पल सताती है
वह गीत गजल गीतिका बन महफिल सजाती है
वह गीत गजल गीतिका बन महफिल सजाती है
लेकर गुलाबी सी लहर चहु और छाती है
वह स्वयं सिद्दा बन गजल हल चल मचाती है
वह स्वयं सिद्दा बन गजल हल चल मचाती है
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