जिन्दगी के पथ पर मत मान  लेना हार  
ह्रदय मे उल्लास भर कर,राह करना पार  
दूर कर दिल कि टूटन को छोड दे मन की घुटन को  
सामने मंजिल खडी है  कर रही सत्कार  
आदते  जो भी बुरी है  छल कपट की वे धुरी है  
आचरण अपना बदल दे है सत्य निर्विकार  
सोच का विस्तार ही तो हर स्वप्न का आधार 
श्रम देता है सदा ही हर सोच को आकार  
हो रहा मानस दूषित ,भावनाये है  कलुषित 
सच्चाई कि ताकत बनी है आज की तलवार
हर चूभन और  घाव पर ही पड रहे है वार  
भेद क्यो तू खोले मन का हर तरफ गद्दार  
 
 
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