मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

मन कुन्दन बन जाये |


तेरा ईश तुझमे रहे,भीतर दीप जलाये
उर के तम को दीप्त करे,परमात्मा दिख जाये||1||
आग बबुला क्यो हुआ,पावक देह लगाये
मन मे शीतलता धरे,शिव सहज मिल जाये||2||
निर्मल कर निज आत्मा ,निर्विकार मिल जाये
दुर्जन दल दुष्टात्मा,पापी जन पछताय ||3||
कर्मयोग का मार्ग चले,जीवन ज्योत जलाय
आत्म बोध का तत्व मिले ,मन कुन्दन बन जाये ||4||
अमर्यादित आचरण ,तेरे मन क्यो भाय
समय बडा अनमोल है,स्वर्ण समय बीत जाय ||5||
सहन कर आलोचना ,भय क्यो तुझे सताय
छैनी पत्थर पर पडे,देवात्मा बस जाय ||6||
छप्पन के इस भोग का,लगा है ऐसा रोग
तिर्थों मे पण्डे पडे,बने तीर्थ उद्योग ||7||

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज