सूरज पूरब से उग कर यह बताता है
रात भर सोया नही कर्तव्य याद आता है
सूरज हुआ अस्ताचल छटाएं बिखरी है
हुई पर्वत श्रेणियां पुलकित घटाये निखरी है
शब्द भी साथ नही , भाव हुए भारी है
अरमान के आसमा पे अब सूरज की बारी है
घाव पाये कितने ही , दर्द बहुत झेला है
अग्नि के पथ रथ है सूरज अकेला है
हट जा रे अंधियारे पथ बहुत काला है
अग्नि में तप तप कर पाया उजाला है
हट जा रे अंधियारे पथ बहुत काला है
अग्नि में तप तप कर पाया उजाला है
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