सोमवार, 20 अप्रैल 2020

सूरज की पीड़ा

सूरज पूरब से उग कर यह बताता है 
रात भर सोया नही कर्तव्य याद आता है

सूरज हुआ अस्ताचल छटाएं  बिखरी है
हुई पर्वत श्रेणियां पुलकित घटाये निखरी है

शब्द भी साथ नही , भाव हुए भारी है 
अरमान के आसमा पे अब सूरज की बारी है 

घाव पाये कितने ही , दर्द बहुत झेला है
अग्नि के पथ रथ है सूरज अकेला है

हट जा रे अंधियारे पथ बहुत काला है
अग्नि में तप तप कर पाया उजाला है


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आँगन का दीपक

जहा दिव्य हैं ज्ञान  नहीं  रहा  वहा  अभिमान  दीपक गुणगान  करो  करो  दिव्यता  पान  उजियारे  का  दान  करो  दीपक  बन  अभियान  दीपो ...