शनिवार, 25 अप्रैल 2020

परशुराम

धन वैभव की चाह नही ,था योगी का हठ
परशु को न बांध सका अत्याचारी शठ

अक्षय ऊर्जा साथ रहे , भगवन दो वरदान
सत का संग कर पाऊ मैं , जैसे परशु राम

दीन दुर्बल के रक्षक थे परशु धारी राम 
हे!भगवन सब कष्ट हरो , तुमको करु प्रणाम

सत्ता से वे दूर रहे , शोषित जन के साथ
शत्रु का साम्राज्य ढहा, परशु जी के हाथ

पद पैसे की चाह नही , घर जैसे हो नीड़
सत का बल ही चाहिए, नही चाहिए भीड़


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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज