शुक्रवार, 22 मई 2020

देख रहे है नैन

मजदूरी तो मिली नही कुचल गई है ट्रैन
कुछ रोटी संग साग रखा ताक रहे है नैन

गिरते उठते चोट लगी , घायल हो गए पाँव
है सबका संकल्प यही, मिल जाये बस गांव

 मुम्बई से वह गांव चला, होकर के मजबूर
भूख से तो है मौत भली , मरना भी मंजूर

तुम कितनी ही बात करो , सब कुछ है बेकार 
दुख निर्धन का बांट सको , है इसकी दरकार

दे दो चाहे लाख करोड़ , कुछ भी न हो पाय
चल कर जो बेहोश हुए   घर पहुचाया जाय








10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत मर्म स्पर्शी।
    सामायिक यथार्थ।

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