जिसके जितने रंग रहे वह उतना बदरंग
वह वैसा ही बना यहाँ जिसका जैसा संग
कितने थे अंदाज नये कितना फैला झूठ
मैला कुचला एक कमल कितने सारे ठूठ
धन पाकर न तृप्त हुआ ये कैसा अभिशाप
जीवन का रस चला गया ढोता हर दम पाप
गुणहीन अब गुणवंत बने थे कोरे व्याख्यान
अब कौड़ी के भाव बिकी हीरे की एक खान
उनको तो वरदान मिला ,मिला हमे है शाप
तू अपनी परछाई को नाप सके तो नाप
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