शिव के हाथों नाद रहा डमरू की डम डम
भूत भावी कल नाच रहे काँपे दुष्ट अधम
शिव ओघड़ के रूप रहे ,लम्बोदर के अज
रूप तो क्षण भंगुर रहा रूप के मद को तज
उनके हाथों काल रहा होता तीक्ष्ण त्रिशूल
सब ग्रंथो का सार यही शिव ही सबके मूल
कालो में महाकाल रहे भोलो के है नाथ
दुष्टों को न क्षम्य करे कमजोरों के साथ
शिव जी पर है बिल्व चढ़े पाये धतुरा भांग
पा लेते जल दूध दही सादा अनुष्ठान
शिव शम्भू की थाह नही ,वे मानस के हंस
उनसे ही तू प्रीत लगा कट जायेगे दंश
शिव अनुभव के नेत्र रहे अनहद के वे ज्ञान
सच्चाई की ताकत से होगी कब पहचान
जिनका होता कोई नही उनके तो भगवान
शिव निर्धन के मित्र रहे सज्जन के सम्मान
हृदय में न बैर रहे रख कर्मो में आग
शिव के मस्तक नीर बहा गर्दन में है नाग
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार के साथ धन्यवाद
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