जिसके सच्चे भाव रहे उसका है भगवान
पल पल ढलती रात गई दिन ढलती धूप
प्रतिपल जीवन बीत रहा,धुंधला होता रूप
जीवन से क्यो हार गया विष का करके पान
कितने थे अरमान भरे कैसा था इंसान
जीवन है चल चित्र नही क्यो करता अभिनय
तुझको हर पल देख रहा जीवन का संजय
तन मन को है बांच रहा जांच रहा कण कण
जैसा दिखता रूप यहां दिखलाता दर्पण
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