पसीना है गंगा जल
जब किसने बहाया हैं
मेहनत से शोहरत का
सूरज उग पाया हैं
सपनों मे कर्मों की
रहती जहा गीता है
मस्तक वह पिता के
चरणों में झुक पाया है
लज्जा का आभूषण करुणा के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज ह्रदय मे वत्सलता गुणीयों का रत्न नियति भी लिखती है न बिकती हर चीज
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