बुधवार, 28 जून 2023

जो कुदरत पे हारा है



 

तलहटी पर्वत की
 निर्झर  की  धारा  है
धारा से  सुन्दरता 
नदिया तट प्यारा  है  
कुदरत  मे  रह  कर  जो 
हर  पल  को  जीता  है 
जीवन  तो  उसका  है 
कुदरत  पे वारा  है 

बादल  से  नभ  उतरे  
छोटा  सा  गांव 
तलहटी  पर्वत की 
ठण्डी  सी  छांव 
बिछोना  धरती  पर  
मख मल  सी  दूब 
जीवन हो जल जैसा  
जिसमे ठहराव





जीवन  का  अमृत  तो  
उसने  ही  पाया  है 
नित  नई सरगम का  
गीत  यहाँ  गाया  है 
गीतों   में  हर  ग़म  है 
संगीत  में  सरगम  है 
सरगम से सूर  सजा
मन  को  महकाया  है 

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज