ऊँची जिसकी सोच रही, ऊँची है परवाज़
मूल्यवान मौलिक वहीं, अपना है अंदाज
कर्मों से बोल रहा ,मुख से न वाचाल
मरु थल में नीर मिला , खोदे जो पाताल
उसका कोई मूल्य नहीं, जो व्यक्तित्व विहीन
अपने दुर्गुण दूर करे , सुसंस्कृत कुलीन
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