जो खुद ही न सुधरा
ख़ुद ही पछताया है
जीवन मे सुख नहीं
दुख ही तो पाया है
आँखों से निकले है
जब उसके आँसू
आँसू के जल से ही
खुद को नहलाया है
भीतर ही भीतर जो
छुप छुप कर रोता है
मिलता कहीं चैन
जगता न सोता है
सच मुच न होती हैं
उसकी भरपाई हैं
दुख दर्द पाता है
बेटा इकलौता है
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