शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे  
बगिया  आँगन  नीड़ 
जब पूरब  से  भोर  हुई 
चिडियों  की  है  भीड़ 

सुन्दरतम है  सुबह  रही 
महकी  महकी  शाम 
सुबह  के  उजियारे  को  
चिड़िया  करे  सलाम 


जब भी  दूर  तक  बात  गई 
हो  गई  पूरी  रात 
घटनाओं का  दौर  चला 
हो  गये  दो  दो  हाथ 

जीवन मे  हर  बार  मिले 
जितने  भी  थे मोड़ 
अब  रिश्तों  की  खैर नहीं 
स्वारथ  की  घुड़दौड़ 

जीवन होता  एक  नदी 
नदी किनारे  गांव 
पगडण्डियाँ  छूट  रही  
कहा गई  है  छांव 

मझधार में फंस गई नैया   
तूफानों के बीच 
तट पर सारे  मिल  गये 
जितने भी थे  नीच 



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